Saturday, August 20, 2011

How should the revolution be handled?

आदरणीय कुमार विस्वास जी ,
सादर प्रणाम!
मेरा नाम त्रिभुवन प्रकाश जालान है और मैंने 1974 के लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के आन्दोलन में हिस्सा लिया था I सर्विदित है की सत्ता
बदली लेकिन नयी सत्ता में बैठे सत्तासीन लोगों ने देश के साथ गद्दारी की और पहले से भी ज्यादा देश का बुरा हाल कर दिया, इसीलिए ये कहा जा सकता है की राजनितिक लोगों का विस्वास करना कितना घातक हो सकता है चाहे वो किसी भी दल के हो. मैं गाँधी को एक चिन्तक या महात्मा ही नहीं मानता हूँ बल्कि एक कुशाग्र बुद्धि के स्वामी के रूप में जनता पहचानता हूँ. क्या यह कोई मानेगा की सिर्फ और सिर्फ अंसन के बल पर उन्होंने अंग्रेजों को देश छोरन के लिए मजबूर किया. डंडी यात्रा, चंपारण से फूका गया आन्दोलन का विगुल या फिर गोल मज़े कांफ्रेंस इतियादी बातें उनकी कूटनीति की श्रेणी में ही राखी जा सकती है इसीलिए मेरा मानना है की भरष्ट राजनीती को कूटनीति से ही परस्त किया जा सकता है, इसकेलिए अन्ना टीम को आपने ऊपर से अन्ना टीम का ठप्पा हटाने की चाल चलनी होगी क्योंकि अन्ना टीम मात्र ७ लोगों द्वारा पूरे आन्दोलन का नेत्रित्व करने का आभास देती है इसीलिए मेरा निवेदन है की देश के निष्पक्ष विद्वान और जाने माने लेखकों, पत्रकारों, विचारकों, बुद्धि जीवियों से बात कर आपने मंच से जोरा जाये. देश के सभी विस्वविद्यालयों तक आपनी बात पहुंचाई जाये. छात्र छात्राओं को उनके भविष्य की दुहाई देते हुए उन्हें बताया जाये की विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहाँ नवयुवकों, युवकों की संख्या सभी देशों से बड़ी है और यदि वे संघटित हो जाये तो इन् राजनितिक लोगों की बाजीगरी धरी की धरी रह जाएगी.

मेरे हिसाब से देश के लोगों को यह बताया जाना चहिये की सत्ता धरी लोग निहित स्वार्थों की कारन " जन लोकपाल कानून" को लम्बे समय तक लटकाए रखने की नियत से यह कह रहे हैं की "इतनी जल्दी बिल कैसे पास हो सकता है ?" तोह प्रशन उठता है की शाह बनू केस में समाज के एक तबके को धयान में रख कर अविलम्ब संविधान संसोधन किया जा सकता है( उसमे भी उस तबके की आधी आबादी को ही धयान में रखा गया ) तोह फिर पूरे देश के सभी तबकों को धयान में रखते हुए संविधान संसोधन कैसे अनुचित है ?

प्रतीत होता है की यह लड़ाई लम्बी चलने वाली है इसीलिए चुके भारतवर्ष गाँव में बस्ता है इसीलिए संघटनात्मक प्रकिर्या अविलम्ब आरम्भ करनी चहिये. गाँव गाँव से संपर्क साधा जाना चहिये और मीडिया को गों की तरफ मोड़ना चहिये.

बी ज पि दूसरी बड़ी पार्टी है और इसने अपने पत्ते नहीं खोले हैं. स्तान्डिंग कमिटी से पारित जो बिल लोक सभा में पेश होगा उसपर भा जा पा कांग्रेस का साथ देगी ऐसा नहीं लगता है क्योंकि इस पार्टी के सर्वाधिक लोक प्रिय बेटा श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधान मंत्री पद पे रहते हुए प्रधान मंत्री को लोकपल के दायरे में रखने की बात कही थी. लेकिन साथ साथ यह भी धयान में रखने की बात है की प्रधान मंत्री, जुदिसिअरी और लोवेर बुरेऔक्रेच्य को दायरे में रखने के लिए कांग्रेस राजी भी हो जाती है तो भा जा पा कभी नहीं चैहेगी की भार्स्ताचार को कम करने का सेहरा कांग्रेस के सर बंधे. वह कोई न कोई तोड़ सोच रही होगी और आपके आन्दोलन का लाभ उठा कर आगे आना चाहेगी. क्या हर्ज़ है यदि वो आगे आना चाहे.

मान लिजेये की यह आन्दोलन लम्बा चलता है ( जय प्रकाश का आन्दोलन ७४ से ७७ चला था ) ऐसी स्थिथि में आन्दोलन को अलग अलग रास्तों से चुनाव तक ले जाना होगा और चुनाव में जो पार्टी सिविल सोसाइटी को लिखित आश्वासन देगी की भारत को भारस्ताचार मुक्त बनाने के लिए सिविल सोसाइटी का मसोअदा ही पास किया जायेगा उसी को आम जन समर्थन मिलेगा.

मुझे लगता है की अरुणा रॉय को असहमति पसंद नहीं है. रास्ट्रीय सलाहकार परिसद की सदस्य है जिसकी सोनिया गाँधी अध्यक्षा हैं लोगों को यह बताना चाहिए. रॉय ने दोनों ही बिलों का विरोध किया है सायद आपनी विस्वसनीयता बनाये रखने के लिए उन्होंने ऐसा किया है. मेरा पूर्ण विश्वास है की वो आपनी विश्वसनीयता खोने वाली हैं.

भवदीय
टी पी जालान

3 comments:

  1. Kya bhratsachar hi main mudda hai.............baki mudfdon ka kya hoga...........unke upar ki kya planning rehni chahiye.............ispar bhi ek blog likhkar sabhi ko anughrahit karen.........aaj desh ki janta aage aa chuki hai........jaroorat hai to kewal sahi disha ki.....public ke active participatio se hi democracy chal sakti hai

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  3. mere samjh se to BJP ios not behaving as a gud oposition party they can be benifited with this revolution

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